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संपीडित जैव-गैस अथवा जैव – सीएनजी

जैव सीएनजी, जैव गैस का शुद्ध रूप है जिसकी संरचना और संभावित ऊर्जा जीवाश्‍म आधारित प्राकृतिक गैस के समान है। इसका उत्‍पादन खेती के अपशिष्‍ट, पशुओं के गोबर, खाद्य अपशिष्‍ट, एमएसडब्‍ल्‍यू और नाले के पानाी से होता है। अपशिष्‍ट/बायोगैस स्‍त्रोतों जैसे खेती के अवशिष्‍ट, मवेशियों के गोबर, गन्‍ने के अपशिष्‍ट, नगरपालिका के ठोस अपशिष्‍ट, सीवेज उपचार संयंत्र अपशिष्‍ट इत्‍यादि अवायवीय अपघटन (नोरोबिक डीकम्‍पोजीशन) की प्रक्रिया के माध्‍यम से जैव-गैस बनाया जाता है। शुद्धिकरण के बाद इसे संपीडित किया जाता है जिसमें 90 से अधिक मिथेन के अंश होते हैं। इसके बाद सम्‍पीडित जैव-गैस में पाए जाने वाले गुणधर्म, वाणिज्यिक दृष्टि से उपलब्‍ध प्राकृतिक के समान होते हैं और इसका उपयोग वैकल्पिक, नवीकरण ऑटोमोटिव ईंधन के रूप में किया जा सकता है।

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संपीडित जैव-गैस (सीबीजी) के फायदे

खेती के अपशिष्‍ट, मवेशियों के गोबर और नगरपालिका के ठोस अपशिष्‍ट के सीबीजी में वाणिज्यिक स्‍तर पर रूपांतरित करने के बहुविध फायदे हैं:

  • जिम्‍मेदार अपशिट प्रबंधन, कार्बन उत्‍सर्जनों और प्रदूषण में कमी
  • किसानों के लिए अतिरिक्‍त राजस्‍व स्‍त्रोत
  • उद्यमशीलता, ग्रामीण अर्थनीति और रोजगार को बढ़ावा
  • जलवायु परिवर्तन हासिल करने में राष्‍ट्रीय प्रतिबद्धताओं को समर्थन, प्राकृतिक गैस और क्रूड ऑयल के आयात में कमी
  • क्रूड ऑयल/गैस के मूल्‍य में उतारच-चढाव के लिए बफर
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प्रौद्योगिकी उपलब्‍धता

जैव-गैस प्राकृतिक रूप से अपशिष्‍ट/बायोमास स्‍त्रोतों जैसे खेती के अपिशिष्‍ट, मवेशियों के गोबर, गन्‍ने के अपशिष्‍ट, नगरपालिका के ठोस अपशिष्‍ट, सीवेज उपचार संयंत्र अपशिष्‍ट इत्‍यादि अवायवीय अपघटन की प्रक्रिया के माध्‍यम से बनाई जाती है।

इस प्रकार उत्‍पादित जैव-गैस में लगभग 55% से 60% मिथेन, 40% से 45% कार्बन डाई ऑक्‍साइड और हाइड्रोजन सल्‍फाइड के अंशों की मात्रा होती है। जैव गैस से कार्बन डाय ऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड गैसों को हटाने के लिए उसका शुद्धिकरण किया जाता है। शुद्धिकरण के पश्‍चात इसे संपीडित किया जाता है और इसे सीबीजी कहा जाता है जिसमें शुद्ध मिथेन का अंश 95% से ऊपर होताा है। इसके बाद सीबीजी को सिलिन्‍डर कैस्‍केड अथवा पाइपलाइनों के माध्‍यम से रिटेल आउटलेटों में परिवहित किया जा सकता है।

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सीबीजी उत्‍पादन का स्‍त्रोत

सरकार ने जैव गैस उत्‍पन्‍न करने के कई स्‍त्रोतों की पहचान की है जिन्‍हें बाद में सीबीजी में रूपांतरित किया जा सकता है। इनमें से कुछ मुर्गी पालन अपशिष्‍ट, खेती के अपशिष्‍ट, मवेशी के गोबर, उपचार योग्‍य औद्योगिक अपशिष्‍ट, चीनी उद्योग के अपशिष्‍ट, नगरपालिका का ठोस अपशिष्‍ट (एमएसडब्‍लयू), पेपर मिल का अपशिष्‍ट, दुग्‍ध व्‍यवसाय का अपशिष्‍ट इत्‍यादि हैं।

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कृषि के अपशिष्‍ट से सीबीजी

कृषि उत्‍पाद के दूसरे सबसे बड़े उत्‍पाद के रूप में भारतीय कृषि सेक्‍टर इसकी जीडीपी का लगभग 15.4% निर्मित करता है और 2017 में कुल वैश्‍वीय कृषि आउटपुट का लगभग 7.39% हिस्‍सा रखता हैं। इस प्रकार यह आईआईटी-बी के शोधकर्ताओं एवं नवीन तथा नवीकरण मंत्रालय के अनुसार, प्रति वर्ष 350 मिलियन टन कृषि का अपशिष्‍ट उत्‍पन्‍न करता है।

ऊर्जा की दृष्टि से यह आकलन किया गया है कि यह अपशिष्‍ट खेती के लिए हरित उर्वरक उत्‍पन्‍न करने के अलावा प्रति वर्ष 18000 मेगावॉट बिजली उत्‍पन्‍न कर सकता है। किसानों को उनके अपशिष्‍ट को खरीदने वाले खरीदार न मिलने पर या तो इस अपशिष्‍ट को जला देते हैं, जिससे उत्‍सर्जनों की भारी मात्रा जारी होती है या उसे फेंक देते हैं जिससे जहरीले रसायनां के उच्‍च अवशेक्षों के कारण मिट्टी और पानी का संदूषण होता है। इन अपशिष्‍टों के प्रभावी उपयोग से इथनॉल और जैव गैस जैसे ईंधनों का उत्‍पादन किया जा सकता है।

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नगरपालिका के अपशिष्‍ट से सीबीजी

एमएसडब्‍ल्‍यू में मुख्‍यत: नगरपालिका या अधिसूचित क्षेत्रों में उत्‍पन्‍न होने वाले वाणिज्यिक और आवासीय अपशिष्‍टों का समावेश होता है जिसमें उद्योगां से निकलने वाले खतरनाक अपशिष्‍टों का समावेश नहीं होता है परन्‍तु उपचारित जैव-मेडिकल अपशिष्‍टों का समावेश होता है।

योजना आयोग (2014) की रिपोर्ट के अनुसार शहरी क्षेत्रों में रहने वाले 377 मिलियन लोगों द्वारा प्रति वर्ष वर्तमान में 62 मिलियन टन एसएसडब्‍लयू उत्‍पन्‍न होता है और ऐसा प्रक्षेपित किया गया है कि वर्ष 2031 तक यह शहरी कैन्टर वार्षिक रूप से 165 मिलियन टन का अपशिष्‍ट उत्‍पन्‍न करेंगे और 2050 तक यह 436 मिलियन टन तक पहुंच जाएगा।

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शक्‍कर उद्योग के अपशिष्‍ट से सीबीजी

शक्‍कर उद्योग भारत का दूसरा सबसे बड़ा कृषि आधारित उद्योग है और यह ग्रामीण जनसंख्‍या के सामाजिक आर्थिक विकास में उल्‍लेखनीय योगदाना देता है। ब्राजील के बाद शक्‍कर में विश्‍व का दूसरा सबसे बड़ा उत्‍पाद होने के कारण जो विश्‍व में कुल शक्‍कर उत्‍पाादन का 15% से 20% उत्‍पन्‍न करता है, यह शक्‍कर उद्योग विश्‍व शक्कर बाज़ार में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। ये उद्योग भी अधिक मात्रा में अपशिष्‍ट और सह-उत्‍पादों की उत्‍पत्ति करते हैं।

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शक्‍कर उत्‍पादन के विभिन्‍न चरणों के दौरान उत्‍पन्‍न अपशिष्‍ट उत्‍पाद निम्‍नानुसार है

स्‍पेंट वाश: खांड/शीरा के उफान और बाद में आवन से प्रति लीटर इथनॉल में 12-14 लीटर का प्रवाह होता है जो मुख्‍यत/ स्‍पेन्‍ट वॉश के रूप में निर्मित होता है। इन्‍सीनरेशन प्रकार की डिस्टिलरीज़, स्‍पेन्‍ट वॉश को ईंधन के रूप में इस्‍तेमाल करती हैं जहां समूचा स्‍पेन्‍ट वॉश कुछ ईंधन के साथ जलाया जाता है ताकि डिस्‍टीलरीज़ को चलाये रखा जा सके। ऐसी डिस्टिलरीज़ पूरे साल चलती हुई देखी जा सकती है और एक भी स्‍पेन्‍ट वॉश बेकार नहीं जाता है। स्‍पेन्‍ट वॉश का उपयोग कंपोस्‍ट खाद के उत्‍पादन में किया जाता है जिसका बाद में कृषि के क्षेत्र में उर्वरक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस व्‍यापार से शक्‍कर उद्योग भी पर्याप्‍त राशि अर्जित करती हैं। कुछ फैक्‍ट्रियों में जैव-गैस संयंत्र होते हैं। स्‍पेन्‍ट वॉश का कुछ हिस्‍सा जैव-गैस के उतपादन में भी प्रयुक्‍त होता है।

प्रेस मड: यह गन्‍ने के रस को छानने के बाद बचा अवशिष्‍ट है। सामान्‍यत: कुचले गए गन्‍ने से औसतन 3.5% से 4% प्रेस मड उत्‍पन्‍न होता है। इस प्रेस मड को फैक्‍टरी में इस्‍तेमाल किए जाने वाले सीबीजी में रूपांतरित करने का अभी तक कोई साधन नहीं है। प्रेस मड को मुख्‍यत: कम्‍पोस्‍ट खाद बनाने में प्रयुत किया जाता है जिसे बाद में फिर खेती के लिए वाणिज्यिक रूप से बेचा जाता है। भारत में प्रेस मड से जैव गैस बनाने की प्रौद्योगिकी उपलब्‍ध नहीं है। तथापि हाल में कुछ जर्मन कंपनियों ने इस तकनीक को भारत में लेकर आने की रूचि दर्शायी है।

बगैस: यह गन्‍ने के रस निकालेन के बाद गन्‍ने का बचा हुआ हिस्‍सा होता है। यह बगैस वर्तमान में दो उद्देश्‍यों कीपूर्ति करता है – को-जनरेशन संयंत्र से थर्मल इलेक्ट्रिसिटी उत्‍पादन के लिए और शक्‍कर उद्योग के बॉयलर्स चलाने के लिए। इस बगैस का उपयोग जैव-गैस के उत्‍पादन के लिए किया जा सकता है।

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प्रचारात्‍मक योजनाएं

  • आरबीआई ने नवीकरण ऊर्जा के अंतर्गत ‘प्राथमिकता सेक्‍टर उधार’ के अंदर सीबीजी वित्‍त पोषण की घोषणा की है
  • अधिकतम 10 करोड़ रूपये प्रति परियोजना के साथ प्रति दिन उत्‍पन्‍न प्रति 4800 कि.ग्रा. सीबीजी के लिए एमएनआरई ने केन्‍द्रीय आर्थिक सहायत (सीएफए) को अधिसूचित किया है।
  • खास सीबीजी संयंत्रों के वित्‍त पोषण के लिए एसबीआई ने हाल में अक्‍टूबर 2020 के महीने में सतत के अंतर्गत ‘संपीडि़त जैव-गैस (सीबीजी) के नाम से एक नया ऋण उत्‍पाद विकसित किया है।
  • बैंक ऑफ बड़ौदा ने सतत के अंतर्गत संपीडित जैव-गैस संयंत्रों के वित्‍त पोषण के लिए ‘बायोगैस संयंत्रों हेतु बैंक ऑफ बड़ोदा स्‍कीम’ नामक नया ऋण उत्‍पाद विकसित किया है और यह प्रस्‍ताव 22/12/2020 को प्राप्‍त हुआ है।
  • कृषि मंत्रालय द्वारा दिनांक 13/07/2020 की गजेट अधिसूचना के तहत उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985 के अंतर्गत डाइजेस्‍टर बायो गैस स्‍लरी डीबीजीएस के समावेश को अनुमोदित किया गया।
  • सीबीजी संयंत्रों के वित्‍त पोषण के लिए पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय वैश्‍वीय आर्थिक संस्‍थानों जैसे एडीबी, विश्‍व बैंक, जीआईसीए, केएफडब्‍ल्‍यू इत्‍यादि के साथ चर्चा कर रहा है।
  • सीपीसीबी ने उनके दिनांक 30/4/2020 के पत्र द्वारा सीबीजी को ‘श्‍वेत श्रेणी’ में समाविष्‍ट करने का निर्देश दिया है। दिल्‍ली, गुजरात, उत्‍तर प्रदेश, पंजाब और पश्चिम बंगाल के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पहले ही जैव-गैस को ‘श्‍वेत श्रेणी’ के अंतर्गत वर्गीकृत कर दिया है।